बिहान के तहत एनआरएलएम द्वारा आयोजित 7 दिवसीय प्रशिक्षण का हुआ आयोजन
दुर्ग। जिला पंचायत द्वारा स्व सहायता समूह की महिलाओं के कौशल संवर्धन के लिए विशेष प्रयास किए जाते रहे हैं। इसी कड़ी में एनआरएलएम (बिहान) के तहत महिलाओं को बाँस से दैनिक उपयोग की विभिन्न चीजें निर्मित करने का प्रशिक्षण दिया गया। जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को अलग-अलग तरह के उत्पाद निर्माण की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि कौशल संवर्धन के साथ-साथ आजीविका के साधन भी निर्मित हों। साथ ही इको फेंडली एवं सस्टेनेबल लाइवलीहूड में बाँस के बहुआयामी उपयोग को देखते हुए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। बाँस आसानी से उपलब्ध होता है। इसलिए इनसे बहुत से उपयोगी सामग्रियों का निर्माण सीख कर महिलाओं ने एक नया हुनर भी सीखा।
महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए वल्र्ड बैम्बू ऑर्गेनाइजेशन तथा द बैम्बू फोरम ऑफ इंडिया की सदस्य गनी जमान ने बताया कि इससे पहले उन्होंने आर्किटेक्चर की विद्यार्थियों को आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके बाँस का इस्तेमाल भवन निर्माण में करने की ट्रेनिंग दी है। बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सीईटी भुवनेश्वर, गुवाहाटी कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर एसबीए विजयवाड़ा, गीतम यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ आर्किटेक्चर विशाखापट्टनम, श्रीश्री यूनिवर्सिटी कटक, वेल्लोर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, मेस्ट्रो स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया है। लेकिन इन महिलाओं के साथ काम करने का अलग ही अनुभव रहा उन्होंने बताया कि महिलाएं अपने घर पर ही रह कर बाँस से दैनिक उपयोग की सैकड़ों चीजें बना सकती हैं और विक्रय कर आमदनी अर्जित कर सकती हैं।
पारंपरिक बसूपा, टोकरी, झऊंहा बनाना सीखा
छत्तीसगढ़ में बांस यहां की परंपरा से जुड़ा हुआ है मकान बनाने से लेकर धार्मिक अनुष्ठान तथा दैनिक उपयोग की सूपा, टोकरी, झऊंहा, पर्रा आदि का निर्माण बांस से किया जाता है। लेकिन अब तक यह कार्य केवल एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता था। प्रशिक्षण में महिलाओं को बांस से चारकोल बनाना भी सिखाया गया। जो बहुत ज्यादा उपयोगी है। भवन निर्माण, फर्नीचर और दूसरी वस्तुओं के निर्माण के दौरान जी अनुपयोगी बांस बचता है उससे बैंबू चारकोल बनता है। इस तरह आम के आम गुठलियों के भी दाम वाली कहावत चरितार्थ होती है। बैम्बू चारकोल का उपयोग एयर फ्रेशनर से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में होता है।
20 समूह से की महिलाओं ने लिया प्रशिक्षण
एनआरएलएम में लाइवलीहुड की डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर सुश्री नेहा बंसोड़ ने बताया कि प्रशिक्षण में 20 स्व सहायता समूह की महिलाएं सम्मिलित हुई जिन्होंने बाँस से दैनिक उपयोग की एवं सजावट की सामग्रियां बनाना सीखा। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य महिलाओं का कौशल उन्नयन था। प्रशिक्षण में शामिल हुई महिलाओं ने बताया कि उन्हें यह प्रशिक्षण बहुत उपयोगी लगा। इसके माध्यम से वो दैनिक उपयोग की वस्तुएं बनाना सीख रही हैं। महिलाओं ने कहा कि वे अपने काम में और सुधार तथा परफेक्शन लाकर अच्छा करने की कोशिश करेंगी। ताकि इस प्रशिक्षण का कमर्शियल फायदा उठा कर आय अर्जित कर सकें।
बांस के रखरखाव का तरीका भी सीखा
प्रशिक्षण में गांव को केवल बांस के उत्पाद बनाना ही नहीं सिखाया गया, बल्कि लंबे समय तक उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए बाँस के रखरखाव के बारे में भी सिखाया गया। बाँस को बैक्टीरिया की मदद से वैज्ञानिक तरीके से कैसे दीमक से बचाने के तरीके के साथ-साथ बोरिक एसिड व बोरिक पॉवडर की मदद बाँस को सुरक्षित रखने के तरीका भी सिखाया गया। गनी जमान ने बताया बांस एक ऐसी वनस्पति है जिसके अनगिनत उपयोग हैं। मकान, पुल, फर्नीचर, बर्तन, कपड़ा, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के साथ-साथ सजावटी सामान बाँस से बनते हैं। इसके अलावा बाँस के औषधीय उपयोग भी हैं। उन्होंने बताया कि वो नार्थ ईस्ट के रहने वाले हैं जहां 50 से अधिक प्रजातियां उगती हैं।